सियासत(03) – बिंद-यादव सहित मुस्लिम वोट बैंक पर भी, जानिए कैसे है ‘बाहुबली विधायक’ की हूँकूमत…

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उत्तर प्रदेश के पुर्वांचल क्षेत्र में ब्राम्हण वर्ग जहां एकजुट होकर बाहुबली विधायक विजय मिश्रा के साथ खड़ा होता है, वहीं जब ‘सियासत’ वोट बैंक का रूख करती है तो विभिन्न जातियों व समुदायों के लोग भी इस विधायक को मसीहा सिद्ध कर देते हैं. मुख्यतः इसका कारण है कि शोषित वर्ग व पीड़ितों के लिए जाति-धर्म भूलकर सरकारी सुविधा के साथ नीजी सहयोग की कार्यशैली…✍️

जगजाहिर है कि सियासत में सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने वाला राजनेता धीरे-धीरे मतदाताओं के सामनें सरेंडर हो जाता है. उत्तर प्रदेश के पुर्वांचल में यही मैजिक काम करता है क्योंकि मिर्जापुर-जौनपुर व प्रयागराज सहित विभिन्न जिलों के लोगों की भदोही में अटूट रिश्तेदारी है। भदोही में विभिन्न जातिय मतदाताओं का शादी-ब्याह सहित विभिन्न कारणों से आना-जाना लगा रहता है। ब्राम्हण ही नहीं बल्कि भदोही जनपद के किसी अन्य गरीब तबके के यहां से भी निमंत्रण पहुंचा तो बाहुबली कहे जाने वाला विधायक विजय मिश्रा परिवार या उनके प्रतिनिधि जरूर पहुंचते रहे हैं। खासतौर पर यह उपस्थिति विभिन्न जिलों से आए मेहमानों पर अलग छाप तो छोड़ती रही है लेकिन अन्य जिलों की खंडहर सड़कों से बरातियों का वाहन जब ज्ञानपुर विधान सभा क्षेत्र के प्रमुख मार्गों से गुजरता है तो, लोग इसे ‘बाहुबली विकास कार्य’ के नजरिए से देखते हैं. इस दौरान किसी भी गांव-समाज में जब ठहरते हैं तो धार्मिक-सार्वजनिक स्थलों के आलावा गली-गली में चापाकल की व्यवस्था भी आकर्षित करती है। फिलहाल हैट्रिकपार यांनि ४ बार लगातार जितने के कारण अब कारवां बरातघर की ओर है, कई गांवों में जमीन की व्यवस्था सुलझाकर बरातियों के ठहरने हेतु शौचालय, सोलर पंम्प युक्त हाइटेक बरातघर निर्माण कार्य दिख रहा है.
खैर…प्रतिद्वंदी नेताओं ही नहीं बल्कि किसी गाँव से अपने करीबियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार, दलाली या किसी कमजोर वर्ग को सताने की शिकायत खुद ‘पीड़ित’ से मिल जाए तो, यह ‘बाहुबली विधायक’ त्वरित एक्शन में आकर ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय हो जाता है. जरूरत पड़ने पर पीड़ितों को शासनिक-प्रशासनिक तौर पर मदद दिलवाने में भी पीछे नहीं हटता है. यही जलवा कायम  रहा है, जिसके कारण बिंद-यादव, धनकर-प्रजापति ही नहीं बल्कि बनिया-मौर्य के साथ मुस्लिम वोटों पर भी हूँकूमत चलती है…
बसपा द्वारा ब्राम्हण-ठाकुरों को ज्यादा नेतृत्व मिलने से भी दलित मतदाता धीरे-धीरे पार्टीवाद छोड़कर नीजी स्तरीय विधायक के खेमें से जुड़ गए हैं व कुछ हद तक वो ठाकुर मतदाता भी साथ जुड़े हैं, जो जातिय व राजनीतिक विद्वैष से परे रहकर क्षेत्रीय विकास कार्य को महत्ता देते हैं। मुख्यतः यही कारण है कि भदोही ही नहीं बल्कि इसका असर पुर्वांचल की सीटों पर पड़ता है। विपक्षी पार्टी के स्थानीय नेताओं पर भी इस बाहुबली विधायक का आंतरिक सिक्का चलता है क्योंकि जब क्षेत्रीय विकास या नीजी समस्याओं को लेकर वे पहुंचते हैं तो परदे के पीछे से उनके समस्याओं के निराकरण सहित मौन मदद का सिलसिला चलता रहा है।

बसपा सरकार के दौरान ‘सलाखों‘ में कैद बाहुबली विधायक विजय मिश्रा को ऐसा जनादेश मिला था कि वह खुद को ‘बाहुबली‘ के बजाय ‘जनबली‘ यांनि जनता के बल का पुरोधा नेता बताते हैं। २०१२ के उक्त आकड़े पर नजर डालें तो पुर्वांचल से बसपा सहित कई पार्टियों का सूपड़ा तो साफ हुआ ही था लेकिन वाकई जनता ने बल देकर ‘जनबली‘ बना दिया.

ज्ञानपुर विधानसभा में तत्कालीन मतदाताओं की संख्या 3,64,749 थी, जिसमें पुरूष मतदाता- 200736 व महिला- 1,63,990 सहित अन्य- 23 थे। इस दौरान 2012 विधान सभा में कुल 1,77,263 यांनि करीबन ५५ प्रतिशत वोट पड़े थे। इसमें क्रमशः विजय मिश्रा, सपा -91604 वोट, दिनेश सिंह, बसपा-53930 वोट, राकेश दुबे, भाजपा-6399 वोट, कांग्रेस-रालोद गठबंधन-5000 वोट और बाकी अन्य को मिलने के आकड़े मीडिया के समक्ष रहे हैं। 

जातिय आकड़ा एक नजर में – ब्राम्हण- १ लाख, विंद- 50 हजार, दलित- 50 हजार, यादव- 20 हजार, मुस्लीम- 20 हजार, ठाकुर- 20 हजार, बनिया- 20 हजार, मौर्य- 15 हजार, पाल- 15 हजार शेष में अन्य जाति, सिख आैर इसाई की संख्या लगभग सौ।

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