‘टिकटमोही’ कजरा – ‘इकाईछाप’ नेता एकजुट, फिर भी संख्या २सौ से ३सौ.!!

मुंबई-ठाणे हो या फिर कल्याण… कहीं-कहीं इन दिनों ‘कजरी’ के नाम पर ‘कजरा’ हो रहा है और विभिन्न पार्टियों के स्थानीय ‘इकाईछाप’ उत्तर भारतीय नेता एकजुट हो जा रहें हैं. फिर भी आयोजन में संख्या २सौ से ३सौ के अंदर ही अटक जा रही है. ऐसे में भाजपा-शिवसेना जैसी पार्टियों के दिग्गज नेता भी ‘पद’ या ‘टिकटमोही’ आयोजकों से कवन्नी काट रहे हैं।

राजनीति के विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा-शिवसेना जैसे राजनीतिक दल ने अब अधिकांश लोकल स्तर के उत्तर भारतीय नेताओं की सामाजिक पकड़ को भांप लिया है. इसलिए पद भी पार्टी में बेसिक पैनल के बजाय साईड ट्रैक की ‘उत्तर भारतीय इकाई’ में देकर उन्हें ‘इकाईछाप’ बना दिया है. हालांकि कुछ को स्थानीय विधायक या सांसद की कृपा से बेसिक पैनल में भी पद मिला है लेकिन उनकी पूछ कहीं कुछ विशेष नहीं है. खैर..इन दिनों सर्वदलीय ‘इकाईछाप’ नेता भी एकजुट होकर ‘महिलाओं की कजरी’ जैसे आयोजन पर कब्जा जमा लिए हैं, जहां महिलाओं की संख्या कम होने के कारण ‘कजरी’ भी ‘कजरा’ सा नजर आ रहा है।
आखिर क्या करें बिचारे..कल्याण के एक धार्मिक-सांस्कृतिक संस्था के बुजुर्ग संचालक अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि चूंकि यह ‘ईकाईछाप’ नेता पार्टी से जुड़े हैं. इसलिए इन्हें कुछ ना कुछ आयोजन करके ‘खद्दरटाईट’ रखना पड़ रहा है. यदि ऐसा नहीं करेंगे तो पार्टी में पद हो या नगर सेवकी का टिकट…दावेदारी कैसे करेगें. लेकिन बड़े शर्म की बात है कि आजकल ‘कजरी’ की आड़ में ‘कजरा’ खेला जा रहा है, यांनी समाज के नाम पर ‘पार्टी में पद’ या ‘चुनावी टिकट’ के लिए आयोजन किया जा रहा है, जबकि यह सब आयोजन कई प्योर गैर राजनीतिक सांस्कृतिक-धार्मिक संस्थाओं द्वारा निरंतर बिना किसी ‘पार्टी पद व टिकट मोह’ के समाज को समर्पित किया जाता रहा है।

पत्रकारिता सर्वोपरि धर्म – एक वरिष्ठ पत्रकार व संपादक तंज कसते हुए कहते हैं कि क्षेत्रीय अंशकालिक पत्रकारों को पत्रकारिता के धर्म का भान नहीं है और वे हिन्दी भाषी समाज के लोगों की पीड़ा ना ही सुन रहे हैं और ना लिख पा रहे हैं बल्कि कुछ अंशकालिक पत्रकार भी ‘दोना चटुआ’ की तरह ‘ईकाईछाप’ नेताओं की सामाजिक संस्था में बैठकर हद-पद लेकर माला फेर रहें हैं और फेरना भी चाहिए क्योंकि नीजी स्वार्थ में ही तो सब डूबे हैं. इसी में कुछ ‘इकाईछाप’ नेता तो गिरोहबाज चमचे पाल रखे हैं. यदि कोई संस्था या दुकान पर कोई चर्चा करे, तो उसे किसी wtapps समूह या मंच से आयोजक मंडली के चमचे धकियाने से बाज नहीं आ रहे हैं. मतलब की आव-बाव भी बक रहे हैं।
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