यहां सुप्रसिद्ध हैं ‘व्यासपीठ’ शेख अब्दुल्ला – आखिरकार बोले ‘सेनानी’..ऐ ‘श्रीराम’ के भी हैं और ‘काम’ के भी.!!

यूं तो धार्मिक-सांस्कृतिक रामलीला मंच चहूंओर सज चुका है लेकिन भदोही जनपद के तहसील ज्ञानपुर अंतर्गत अकोढ़ा गाँव की रामलीला में कई ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हैं, जिसे जानकर आप भी स्वयं को रोक नहीं पाएगें..यकीनन प्रोत्साहन करने पहुंच ही जाएगें।

गौरतलब है कि काशी-प्रयाग मध्य में अकोढ़ा गांव को क्षेत्रीय ख्याति बतौर धर्म नगरी प्राप्त है. यहां ब्रम्हजनों द्वारा धार्मिक कार्यों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है. बताया जाता है कि इस गांव में भी रामलीला मंचन की नींव 57 साल पुरानी है. यहां करीबन 3 दशक हो गए, जहां व्यासपीठ पर शेख अब्दुल्ला विराजमान रहते हैं. सुर-ताल में शेख अब्दुल्ला को बड़े-बड़े कंठधारी भी मात् नहीं दे पाए हैं. इसी तरह इनके साथी मुमताज के ढ़ोलक की थाप ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ का कीर्तिमान रच रही है।

सोमवार की रात रामलीला मंच तक पहुंचे भाजपा (पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ) के जिला सह संयोजक विनय त्रिपाठी ‘सेनानी’ ने इस संवाददाता से बातचीत में कहा कि ‘हम देश की रक्षा हेतु बार्डर पर डटे रहे और हमारी टुकड़ी में सर्व धर्मीय जवान थे लेकिन सेवानिवृत्त होकर लौटने के बाद वह गंगा-जमुनी तहजीब हमारी इस जन्मभूमि में दिखती है. यहां व्यासपीठ पर शेख अब्दुल्ला और उनके सहयोगी मुमताज़ अली श्रीराम के भी हैं और काम के भी है. इनका विशेष सम्मान करते हुए रामलीला आयोजन समिति का हृदयतल आभार प्रकट करता हूँ, जो सर्व जाति व धर्म को जोड़े हुए है. सौभाग्य यह है कि यहां सुविधा-संशाधन के बिना स्थानीय कलाकार जो प्रस्तुति दे रहे हैं, शायद ही कहीं ऐसा निरंतर संभव हो पाए. जो भी हमसे बन पाएगा इस रामलीला समिति के बतौर सहयोगी सदैव तत्पर रहूंगा.’
इस दौरान आदर्श रामलीला समिति की तरफ से पूर्व भाजपा पदाधिकारी व रामलीला मंच के संचालक भूपेंद्र त्रिपाठी (पं. दुर्गा प्रसाद) व युवा नेतृत्वकार सुरेंद्र बेनबंसी ने आभार प्रकट किया।

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