सपा नेत्री विंदू सरोज ने क्षेत्र भ्रमण के दौरान आज औराई में महिलाओं के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के बाद से सभी क्षेत्रों में विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए हम लोगों ने ऐतिहासिक कार्य किए और समय के साथ जरूरी बदलाव भी। आज हम सभी प्रगतिशील सोच वाले ‘न्यू इंडिया’ में जी रहे हैं। लेकिन एक चीज इस पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है और वह है महिलाओं की सामाजिक स्थिति। इस परिवर्तनशील समाज में भी महिलाओं की स्थिति में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है।
हम आज भी उसी समाज के हिस्से हैं, जहां महिलाओं के अरमान को कुचला जाता था, और उनके हौसलों के पर काट दिए जाते थे। कहने को तो हमारे समाज और लोगों की सोच बदल रही है, लेकिन हकीकत यह है कि यह सोच लोगों की जरूरत और फायदे के हिसाब से बदल रही है। आज भी जब किसी बहू या बेटी के अरमानों को तोड़ा जाता है या उनके सपनों को कुचला जाता है, तब लोग अपने प्रगतिशील सोच को भूल कर परंपरा एवं संस्कार की दुहाई देने लगते हैं। जब किसी महिला पर अपनों के द्वारा अत्याचार किया जाता है, तब यही समाज ‘घर की इज्जत का सवाल है’ और न जाने क्या-क्या बहाने बता कर आवाज उठाने से रोकता है। हमारा समाज कितना भी आधुनिक दिखने लगा हो, लेकिन सच्चाई यह है कि महिलाओं पर वही पुराने सोच और विचार थोपे जाते हैं।
महिलाओं ने सीमित संसाधनों और तमाम पाबंदियों के बावजूद सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। अपनी आधुनिक सोच की मिसाल कैसे दी जाए जब किसी लड़की को यह बोल कर मनोबल स्तर कमजोर किया जाता है कि ‘तुम लड़की हो, तुम यह नहीं कर सकती’। या जब कोई लड़की बहू बन कर हमारे आंगन में आए और उसे यह कहा जाए कि अब यही तुम्हारा संसार है। जरूरत इस बात की है कि आधुनिक सोच की वास्तविकता के मुताबिक किसी लड़की को यह बताया जाना चाहिए कि तुम्हारे अपने लक्ष्य और सपने हैं, जिसे तुम आज भी पूरा कर सकती हो। हम अपने समाज को आदर्श समाज तभी बना और मान सकते हैं, जब महिलाओं के हौसलों को उड़ान और उचित सम्मान मिले और लड़कियां निर्भीक होकर घर से बाहर निकल सकें।
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