आजकल फेसबुकिया सियासत गर्म है. जैसे महाभारत हो रहा हो और सब काल का कपाल लिए डटे हों…वैसे ‘फेसबुकिया मंडी’ के नेता बिना किसी ‘पद’ भी ‘क्षेत्र’ से ‘दिल्ली’ तक हिलाते नजर आते हैं. ‘यह बात अलग है कि उनके कहने से उनके घर की वोट नहीं हिलती, तो दिल्ली के नेता कैसे हिलते होगें..?’ ऐसा भले कोई सोचे लेकिन हम नहीं सोचते क्योंकि लोकतंत्र की अभिव्यक्ति का सदुपयोग तो कर रहे हैं. हिन्दी विद्वान सर्वश्रेष्ठ यूपी वाले डटे हैं. इस दौरान कहीं-कहीं पार्टी-संगठन के एक तरफा सिपाही, दूसरी पदस्थ टीम को ‘दलाल’ घोषित करने की कोर-कसर छोड़ते नजर नहीं आते हैं. ऐसे में ‘एजेंट‘ महोदय का ‘लुप्त’ होना इच्छा जागृत करती है कि पहले जान लिया जाय कि दोनों एक ही हैं या भाई-पट्टीदार…
कई पुस्तकों और लेखों को खंगालने पर कुछ परिभाषा जहंन में आती है, जैसे कि ‘दलाल’ (broker) उस व्यक्ति या संस्था को कहते हैं जो क्रेता एवं विक्रेता के बीच सौदा तय कराने में मदद करता है. जब यह सौदा पक्का हो जाता है तो इसके बदले में दलाल को दलाली (commission) मिलती है. यहां दलाल भांति-भांति के होते हैं. गाय-भैंस की बिक्री से लेकर घर, जमीन, शेयर, कमोडिटी, हथियार, विवाह आदि सभी के दलाल होते हैं. एक दलाल एक अकेला व्यक्ति होता है, जो सौदा निष्पादित होने पर एक खरीदार और विक्रेता के बीच लेनदेन की व्यवस्था करता है. एक दलाल जो विक्रेता के रूप में या खरीदार के रूप में भी कार्य करता है, वह सौदा करने के लिए एक प्रमुख पार्टी बन जाता है.
किसी भी भूमिका को ‘एजेंट’ की भूमिका के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए- जो एक सौदे में एक प्रमुख पार्टी की तरफ से कार्य करता है. उदाहरणार्थ एलआईसी आॅफ इंडिया या अन्य कंपनियों के एजेंट, जिन्हें दलाल नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे एक कंपनी के लिए कार्य करते हैं।
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