यूपी में पंचायत चुनाव के दौरान गांव की गलियों में माया-मोह और रिश्ते-नाते की सौगंध खाई जा रही है. जैसे जैसे समय बीत रहा है, वैसे-वैसे प्रत्याशियों की लहर देखकर मतदाता अपना रूख बदलते जा रहे हैं. हार की झलकती तस्वीरें देख पूर्व चुनावों हारे अब कुछ प्रत्याशी आखिरी चुनाव बताकर हमदर्दी बटोरने का खेल तो खेल दिए लेकिन वही ‘पुराना शिगूफा’ सून साथ में डटे समर्थक भी कन्नी कांटने लगे हैं।
गौरतलब है कि पंचायत चुनाव यूपी के घर-घर को जोड़ता है, जहां प्रत्याशियों की संख्या भी दमदार होती है और एक-एक वोट ‘गेम चेंजर’ की भूमिका निभाते हैं. भदोही जनपद के कई गांवों कुछ चुनावी रसिया किस्म के प्रत्याशी भी देखे जा सकते हैं, जो चुनावी हार झेलते हुए बूढ़े भले हो चले हैं लेकिन अधिकांश चुनाव में प्रत्याशी बतौर आनंद लेते रहे हैं. फिलहाल युवाओं का बोलबाला इस बार के चुनावी माहौल में देखने को मिल रहा है. इस दौरान पहले की तरह हार के डर से कुछ प्रत्याशियों ने पहले की तरह शिगूफा छोड़ दिया कि यह हमारा आखिरी चुनाव है हमें जिताइए. ऐसा पुराना शिगूफा छूटते ही साथ भले कुछ समर्थक खड़े हों लेकिन अधिकांश मतदाताओं का दिल टूट गया. मतदाता कहते हैं कि पहले भी कई बार हार चुके प्रत्याशी यही शिगूफा हर बार छोड़ते हैं और चुनाव हारने के बाद मौका मिलते ही फिर से चुनाव में डट जाते हैं. इस शिगूफे से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उन्हें हार की तस्वीरें झलक गई है. ऐसी स्थिति में हार रहे या पूर्व हारे हुए प्रत्याशियों पर दांव लगाने से अच्छा है कि हम किसी युवा पर दांव लगाऐगें, जो जीत के करीब हैं और उनका हौसला बुलंद हैं। कुछ मतदाता चुटकी लेते हुए नजर आ रहे हैं कि हमेशा हारने वाले प्रत्याशी यदि गलती से जीत भी गए तो जिंदगीभर लड़े चुनावों का खर्च विकास कार्यों में पतीला लगाकर वसूलेगें और दूबारा फिर अपने बेटे-बहू को मैदान में उतारने से भी नहीं हिंचकेगें. जबकि युवाओं को जिताने का तर्क यह युवागण दे रहे हैं कि भविष्य में युवा प्रत्याशियों को बड़े चुनाव भी लड़ना है इसलिए वोटबैंक को बनाए रखने के लिए जीत के बाद वो गांव को सजाने का कार्य करेगें।
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