यूपी में पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है लेकिन इसमें सर्वाधिक झटका भविष्य के चुनावों के मद्देनजर भाजपा को लगता दिख रहा है. मुख्यतः इसका कारण है कि गांव की सरकार बनाने के चक्कर में अपने ही पदाधिकारियों के साथ भाजपा के स्थानीय नेताओं विश्वासघात..✍️
   गौरतलब है कि गांव की सियासत में जिन गलियों की खाक छानकर बूथ या भाजपा के मंडल स्तरीय पदाधिकारी वोटबैंक की लहर भाजपा के पक्ष में खड़े किए थे, उसी में खुलेआम पतीला लगाने में भदोही जनपद के विभिन्न गांवों में भाजपा के ही दिग्गज स्थानीय नेता जुट गए हैं. कुछ तो ग्राम प्रधानी में खड़े भाजपा के पदाधिकारियों को छोड़कर उनके प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों का खुलेआमं प्रचार गाड़ी से उतरकर पैदल घर-घर तक कर रहे हैं. भाजपा पदाधिकारी से प्रत्याशी बने कुछ कर्मठ कार्यकर्ता जहां आंतरिक रूप से भविष्य के चुनावों को लेकर विद्रोह का संकेत दे रहे हैं, वहीं एक ‘मंडल मंत्री’ तो ऐसे विश्वासघात पर मौन रहकर 15 तारीख तक टिप्पणी करने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि उनका दावा है कि स्थानीय वोट बैंक उनके साथ है और उनकी जीत सुनिश्चित है।

क्या कहते हैं भाजपा जिलाध्यक्ष...इस स्थानीय स्तर के पचड़े से उबरने के बजाय भदोही भाजपा जिलाध्यक्ष विनय श्रीवास्तव भी हाथ झटकते नजर आ रहे हैं. ‘सशक्त समाज न्यूज’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि ग्राम प्रधान व बीडीसी के चुनाव में संगठन ने कोई नियमावली नहीं जारी की है. यहां स्वतंत्र रूप से प्रत्याशी लड़ रहे हैं. बूथ अध्यक्ष को ‘गांव का मोदी’ बताने वाले विनय श्रीवास्तव यह भी दावा कर रहे हैं कि चुनाव के बाद आंतरिक कलह से खिसके वोटबैंक को मैनेज करने के लिए पदाधिकारियों को मना लिया जाएगा।

उठ रहे हैं सवाल – फिलहाल यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब स्थानीय पदाधिकारियों के विरूद्ध आसपास के स्थानीय दिग्गज नेता ही चुनावी प्रचार में उतर जाएं तो भविष्य में उनके कहने पर पदाधिकारी कैसे एकमत होगे.? फिलहाल यह सियासी सर्कस है यू हीं चलता रहेगा और यह भविष्य में 2022 के विधायक चुनाव के दौरान ही पता चलेगा कि विश्वासघात झेलने वाला कौन सा पदाधिकारी मान गया और कौन पार्टी के प्रत्याशियों के खिलाफ भितरघात करके ‘जैसे को तैसा’ जवाब दे दिया।
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