दिल को खटके,
जरा हटके…
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इलीगल ‘धरा’ पर, बसे हैं बड़े-बड़े महान
नेताजी चंद निशाने पे, बेफिक्र हैं विद्वान
बेफिक्र हैं विद्वान, यूपी सत्ता ‘उजाड़’ रही
नक्शेबाजी खेल देखिए, किला ‘ढ़हा’ रही
कहे ‘बहुरूपीय’ मौन, सब कुछ हो लीगल
रजिस्ट्री ‘चार्ज’ लिए, बसा ‘शहर’ इंलीगल
*एस. टी.’बहुरूपीय’
(९३२४००६२६९)
आपका व्यंग्यकार, आपकी आवाज..📢
*स्तंभ वर्ष – १२)– ‘जन्मभूमि’ की ‘मिट्टी’ का ‘तिलक’ लगाता हूँ, हाँ…’झूट्ठों की नगरी’ में भी ‘सत्य नारायण’ कथा ‘सुनाता’ हूँ.!
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