भदोही जनपद की सियासत में बड़े-बड़े दिग्गज यांनी मंत्री-विधायक व सांसद स्तरीय राजनेता जलवा बिखरते रहते हैं. यहां आसान नहीं है कि हर कोई इन राजनीतिक शतरंज के खिलाड़ियों का ‘दरबान’ या ‘मोहरा’ बनकर भी जीत सके. मुख्यतः यहां के राजनेता ‘मोहरे’ से ‘मोहरे’ को ही माहिर ‘मात’ देने से भी बाज नहीं आते हैं।
राजनीतिक परिवारवाद से जकड़ी बेड़ियों में, शायद ही कोई जनपद या जनपद से जुड़ा पूर्व या वर्तमान मंत्री-विधायक या सांसद हो, जो नहीं जकड़ा हो. छात्र मंडी से पहले नई नस्ल के युवा नेता छछड़ते हुए आते थे लेकिन अब शायद वह मंडी बंद सी हो गई है और कभी-कभार खुलती है तो वहां भी सियासत के दिग्गजों का ‘परिवारवाद’ या ‘मोहरा प्रोडक्ट’ ही नजर आता है. पहले के ही कई तुर्रम खाॅ नेता बिचारे ऐसे भी हैं कि जो ‘छात्र मंडी’ से सियासत में आकर पार्टीवाद की पगडंडी नापते-नापते बूढ़े हो चले हैं. कुछ अवसर बनते नजर भी आता है तो बड़े-बड़े दिग्गज नेता परिवारवाद का करतब दिखानें में पीछे नहीं हटते. गैर जनपदीय सौदागर हों या जनपद के ठेकेदार…करोड़ों में खेल रहे राजनेताओं द्वारा वंशवाद की प्रथा जनपद पर ऐसे थोपी जाती है, जैसे कि लोकतंत्र में चुनाव मंडी हो और चुनावी पद की कुर्सी यांनी मंडी मेनेजमेंट का मालिकाना हक।
जनता की सेवा के नाम पर चुनावी पद हथियाकर वंशवाद को लांच करने वाले दिग्गज नेताओं से जनपदीय युवा नेताओं को छोड़िए बल्कि बेरोजगार भी नहीं पूछते हैं कि आखिर डाक्टर-इंजिनियर, प्रोफेसर जैसे डिग्रीधारी कामकाजी नस्लों को चुनावी मंडी में क्यों झोंक रहे हो नेताजी..? जिस पद पर वो कार्यरत् हैं वहां लाखों सिर्फ वेतन नहीं मिल ही रहा बल्कि जनसेवा कार्य भी हो रहा है. फिर भी महंगी-महंगी गाड़ियों से उतरकर जब आपके लाडले मंच पर भाषण देगे, तो ही जनता की सेवा हो पाएगी.
जगजाहिर है कि इन दिनों भदोही जनपद की राजनीति आखिरी पायदान पर है. बड़े-बड़े दिग्गज नेता एक-दूजे के घर में घुसकर उसी के वंश-नस्ल का बिस्फोटक तलाशकर परदे के पीछे से शतरंज की बिसात बिछा बैठे हैं और आखिर इतना कसरत करें भी क्यों नहीं…क्योंकि दिग्गज नेताओं की परीक्षा तो १ साल बाद है लेकिन वर्षों से राजनेताओं के लिए परिवारवाद व वंशवाद तोहफा स्वरूप ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख की कुर्सी छोड़ भी दें तो, अब जिला पंचायत की कुर्सी का चुनाव कुछ महीनों बाद ही है. ऐसे सियासत का चुटका फेंकी-फेंका साम-दाम और दंड तक तो पहले ही था और अब ‘भेद’ में भटक रहा है, जिसे राजनैतिक धर्म तो कहा ही नहीं जा सकता बल्कि यूं कहें कि कुटनीतिक कुटिलता से यह राजनीति का आखिरी पायदान है।
जय हिंद, जय ‘जन्मभूमि’ उत्तर प्रदेश
