सशक्त परदेशी (02) – ‘भिवंडी’ से ‘लौट’ गये थे ‘जन्मभूमि’ भदोही, ‘प्रयागराज’ में अब ‘गूंथ’ रहे हैं ‘आटा’….

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‘कलयुग’ में भले ही ‘समाज शास्त्र’ का ज्ञान, ‘अल्प विद्या भयंकरी’ की ‘भेंट’ चढ़ चुका हो लेकिन ‘इच्छाशक्ति’ से सामाजिक ‘परोपकार’ करने में ‘सशक्त परदेशी’ ही ‘नेतृत्वकार’ हैं। मुख्यतः इनके ‘अंतर्मन’ में ‘जाति-धर्म’ से परे ‘मानवता’ का वास होता है। ‘कर्मभूमि’ से ‘जन्मभूमि’ तक सामाजिक-धार्मिक कार्यों में प्रयासरत रहनें वाले ही ‘सशक्त परदेशी’ हैं, जिनकी संस्थागत टीम व उनके कार्यों को प्रोत्साहित करने हेतु ‘सशक्त परदेशी’ धारावाहिक शुभारंभित है..✍️

कलयुग में दौर बदल रहा है और अब नये-नवेले परदेशियों को दूर-दराज शहरों का पानी शूट नहीं करता. ऐसी ही कुछ जीवनगाथा है भदोही के जितेंद्र मिश्रा की। यूं तो ट्रांसपोर्ट के कारोबार को ऊंचाइयों पर पहुंचाने भदोही से महाराष्ट्र के ठाणे-भिवंडी में पिछले दो वर्षों से डेरा जमाये थे लेकिन कोरोना की महामारी के दौर में सेवाभावी आंटा गूथनें का सौभाग्य प्रयागराज में मिला।

गौरतलब है कि करीबन दो वर्षों तक महाराष्ट्र के ठाणे-भिवंडी में डेरा जमाये भदोही जनपद अंतर्गत अभोली ब्लाक निवासी जितेंद्र मिश्रा 15 अगस्त को गांव कुढ़वा लौट गये थे। सन् 1999 से निरंतर संचालित पारिवारिक कंपनी ‘दिलीप रोडलाईंस’ के मुख्यालय अंदावा-प्रयागराज में भी फिर परदेशी बन बैठे। गांव के मिट्टी की मँहक से बेचैन पहले भिवंडी से कई महीनों तक गांव नहीं पहुँच पाते थे लेकिन अब 15 से 20 दिनों में कुढ़वा गांव की मिट्टी में खेल लेते हैं। जितेंद्र बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट के नेटवर्क में कार्य करने वाली इनकी पारिवारिक कंपनी में 4 नीजी मालवाहक गाड़िया भी है। फिलहाल दो दशक पूर्व पिता हृदय नारायण मिश्रा के देवलोक पथिक होनें के बाद बड़े भाई दिलीप मिश्रा ही जिम्मेदारियों वहन करते रहे, जोकि अब सिर्फ ट्रांसपोर्ट के कारोबार में मार्गदर्शन बतौर प्रयागराज आते हैं और बाकी समय परिवार व गांव-समाज को समर्पित करते हैं।

सशक्त परदेशी – ‘प्रयागराज’ में ‘दिलीप रोडलाईंस’ के जितेंद्र मिश्रा

लाॅकडाऊन में सेवाभावी – कोरोना महामारी के दौरान लाॅकडाऊन में प्रयागराज के आसपास क्षेत्रों में फंसे ट्रक चालकों के लिये सेवाभावी कार्य शुभारंभ किये, वहीं अचानक सड़कों से भूखे-प्यासे पैदल गूजरते लोगों को देखकर अंतर्मन ने झकझोर दिया. फिर झूंसी के आसपास सड़कों से गुजर रहे मजदूर हों या मजबूर, उनके लिये प्रतिदिन 100 से 200 लंच वितरण किया, जिसके बाद आसपास बसे सैकड़ो मजदूरों को अनाज व अन्य सामग्री वितरण हुआ, जोकि छत्तीसगढ़ के लेबर-मिस्त्री मजदूर थे. अन्य राज्यों के मजदूरों पर बड़ी विपदा थी क्योंकि उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है।
संघर्षमय साथी – महावीर रोड कैरियर्स के मालिक सुनील पांडेय, संजीव पांडेय (ट्रक मालिक), सोभनाथ पाल (मिठाई वाले), बृजेश सिंह पटेल (अंदावा के किसान) जैसे कुछ संघर्षमय साथी सेवाभावी कार्य में धनराशि व अनाज देकर मुहिम का दीप जलाये बैठे हैं, युवा कार्यकर्ता राजू पटेल, सचिन पांडेय, अमित तिवारी, राजेश मिश्रा, विनोद गिरी, पियुष दूबे, राजकुमार वर्मा जैसे दर्जनों अब भी सेवारत् साथ में हैं।

ट्रक चालक से भंडारी बने हरिवंश सिंह

हरिवंश सिंह बने भंडारी – लाॅकडाऊन के शुरूआती दौर के मंजर को याद करके सहमते जितेंद्र मिश्रा अब भावूक होकर बताते हैं कि ट्रक ड्राइवर हरिवंश सिंह लाॅकडाऊन में प्रयागराज फंस गये थे, जोकि उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के निवासी हैं। वे निरंतर आज भी हौसला दिखाते हुये 100-200 भूखों के भंडारी बन रोटी सेंकते हैं तो, आटा गूंथकर सेवाभावी पथ हम भी साथी हैं।

कर्मभूमि’ से ‘जन्मभूमि’ तक हम पहुंचाते हैं आपके सेवाभावी कार्य, यदि आप भी ‘सशक्त परदेशी’ हैं तो, सशक्त समाज’ न्यूज नेटवर्क से wtapps या call के माध्यम से 9892746387 पर संपर्क कर सकते हैं..प्रेस विज्ञप्ति sashaktsamaaj@gmail पर आमंत्रित…