सरकार भले ही ‘भ्रष्टाचार निवारण’ को लेकर काफी सक्रिय है लेकिन व्यवस्था को पारदर्शी बनाने वाला यंत्र ही खोखला साबित हो रहा है। जहां विभिन्न विधियां पहले से ही निर्मित हैं, वहीं आम आदमी को सहूलियत प्रदान करने के लिये सरकारें नई-नई व्यवस्था भी प्रदान कर रही हैं। फिर भी शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारी ही भ्रष्टतंत्र को बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद में कुछ ऐसी ही गतिविधियां प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
गौरतलब है कि आम जनमानस को सहूलियत पूर्ण जानकारी मुहैया करवाने हेतु ‘सुचना का अधिकार’ बतौर (आरटीआई) तो लागू है लेकिन उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में यह व्यवस्था फिसड्डी साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद में शासनिक-प्रशासनिक उदासानिता कहें या भ्रष्टाचारी अधिकारियों की काली करतूत लेकिन फिलहाल ‘आरटीआई’ के तहत मांगी गई जानकारियों को समयानुसार मुहैया करवाने में शासनिक तंत्र असक्षम नजर आ रहा है। ऐसे सैकड़ो मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें जानकारी नहीं मुहैया करवाई गई। इसके बाद अपील टू अपील आरटीआई कार्यकर्ता भटक रहे हैं। ऐसे में यदि कोई आम जनमानस आरटीआई के तहत कोई जानकारी मांग ले और समयानुसार मिल जाये, यह शायद किसी चमत्कारिक संयोग से कम नहीं होगा।
शासनिक-प्रशासनिक अधिकारी बने विलेन…
सत्ता-सरकार द्वारा जहां जनहित नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिये लाखों-करोड़ो विज्ञापन व जागरूकता अभियान के तहत फूंका जा रहा है, वहीं अधिकांश मामलों में कुछ शासनिक-प्रशासनिक अधिकारी ही विलेन की भूमिका निभा रहे हैं। भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबकी लगा रहे उक्त अधिकारी खुद को या अधीनस्थ अधिकारियों की काली करतूत की छिपाने हेतु प्रयासरत हैं। फिर भी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कई मामलों में सरकारी नुमाइंदों के भ्रष्टाचारिक फेहरिस्त को खोलने में सफलता हांसिल की है।
हवा-हवाई नहीं बल्कि प्रत्यक्ष प्रमाण…
तहसील ज्ञानपुर अन्तर्गत बेरासपुर गांव से जुड़ी कुछ जानकारियां स्थानीय पत्रकार संतोष तिवारी ने 2 नवम्बर 2019 को मांगी थी लेकिन 3 माह बीत जाने के बाद भी सम्बन्धित अधिकारी व कर्मचारी मांगी गई सूचना न दे सके। संतोष तिवारी बताते हैं कि जब भी तहसील के सम्बन्धित कर्मचारी से सूचना की बात करते है तो रोज नया बहाना बनाकर जल्द ही सूचना देने का आश्वासन देते है। ऐसे ही तीन महिना बीत गया लेकिन सूचना न मिली। अब यहां प्रश्न बनता है कि सूचना एक माह में उपलब्ध कराने का नियम है। तो विभागों के कर्मचारी या अधिकारी देर क्यों करते है?
थकहार शांत बैठ जाते हैं याचिकाकर्ताा..
विभागीय खामियां छिपाने हेतु अधिकांश मामलों में रणनीति के तहत देरी की जाती है, जिससे याचिकाकर्ता थक हारकर बैठ जायें या सूचना न देने के पीछे भ्रष्टाचार का खेल प्रभावी होता है जोकि सही सूचना देने में देरी करने पर मजबूर करता है। ऐसा आरटीआई कार्यकर्ताओं का मत है। आखिरकार विभागों के जनसूचना अधिकारी आरटीआई द्वारा मांगी गई जानकारियां समयानुसार मुहैया करवाने हेतु संबंधित अधिकारियों को बाध्य क्यों नहीं कर पा रहे हैं..यह यक्ष प्रश्न है। कर्मचारियों पर सख्त क्यों नही होते और मांगी गई सुचना में अधिकारियों की भी लापरवाही कही न कही मिलीभगत की आशंका पैदा करती है।
सत्तादल-सरकार को लगता है झटका…
यदि सत्तादल की जनसेवा मंशा के अनुरूप जिलों में बैठे शासनिक अधिकारी कार्यो में लापरवाही करते रहेंगे तो सरकार की कोई भी योजना या नियम सही रूप से आम जनमानस तक नही पहुंच पायेगा। इस तरह के मामले आये दिन देखने व सुनने को मिल रहे है। जो सरकार के नुमाइंदों की कार्य प्रणाली पर एक प्रश्नचिह्न लगाते हैं। जगजाहिर है शासनिक-प्रशासनिक खामियों से दुखी या प्रताड़ित आम जनमानस का आक्रोश जब फूटता है तो उसका झटका सत्तादल-सरकार को ही लगता है।