नवी मुंबई :- अपने देश मे प्राइवेट कॉलेजो से अगर आप एमबीबीएस करना चाहते है तो विद्यार्थियों को करीबन करोड़ रूपये खर्च आता है। हालांकि यही शिक्षा यूरोपीय राष्ट्र में 18 लाख रुपये में पूरा हो रहा है। परिणाम स्वरूप हमारे देश के छात्रों का विदेशी चिकित्सा शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ रहा है। सॉफ्टमो शिक्षण सेवा के अनिल जहागीरदार, नीना जहागीरदार, आरती महामुलकर, सारिका शुक्ल ने बताया कि देश भर में विभिन्न कॉलेजो में मेडिकल के लिये 72 हजार विद्यर्थियों को प्रवेश दिया जाता है। दूसरी तरफ मात्र नीट परीक्षा में 15 लाख विद्यार्थी बैठते है। इस बार 7 लाख 23 हजार विद्यार्थी उत्तीर्ण हुये हैं। इनमें से नीट में 600 से अधिक अंक पानेवाले विद्यार्थियों को वर्ष में 60 हजार रुपये फीस भरना पड़ता है। 400 अंक पानेवाले विद्यार्थियों को वर्ष में 6 लाख रुपये देना पड़ता है। इसके बाद के गुणवत्ता वाले छात्रों को मेडिकल कॉलेजों द्वारा लूटा जाता है। इन विद्यार्थियों को वर्ष का 15 से 28 लाख रुपये फीस भरना पड़ता है। यही वैद्यकीय शिक्षा यूरोपीय राष्ट्र में नामचीन कॉलेजो में केवल 18 से 20 लाख रुपये में होता है। अपने देश मे एमबीबीएस पांच वर्ष में पूरा होता है। यही पढ़ाई विदेशों में 6 बर्ष में पूरा किया जाता है। मतलब की विद्यार्थियों का वर्ष का फीस मात्र तीन लाख रुपये भरना पड़ता है। हर किसी छात्र को विदेशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में प्रवेश नहीं दिया जाता है। अपने देश मे नीट परीक्षा एंव पीजी प्रणाली ग्रुप को 50 प्रतिशत अंक मिलना आवश्यक है। यह पात्रता न होने पर विद्यार्थियों को वहा भी मेडिकल के लिए प्रवेश नही दिया जाता। इन बातों से संबंधित जानकारी देने के लिये 22 अगस्त को खारघर के थ्री स्टार होटल के समर्थ वैंकेट हाॅल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

News by-  प्रमोद कुमार

 

Advertisement https://youtube.com/@BMB-TIMES