परमात्मा महावीर के वर्तमान को समझने के लिए उनके अतीत को समझना होगा। क्योंकि आज की प्राप्ति कल का परिणाम है। उनके अतीत की घटनाओं को समझें बिना उनके इस जन्म एवं जीवन को समझना कठिन है। पर्युषण पर्व के चौथे दिन श्री जिनकुशलसुरि दादावाड़ी के प्रांगण में साध्वी डॉ. शासनप्रभा श्रीजी ने यह बात कहीं। उन्होंने कहा कि परमात्मा महावीर ने नयसार के जन्म में ही मासक्षमण परम् तपस्वी मुनिराज को निर्दोष आहार देकर सम्यक्त्व प्राप्त किया था। सम्यक्त्व का अर्थ है आत्मा से मिथ्या धारणाओं का निरसन होना। सम्यक्त्व प्राप्त करने का यह अर्थ नहीं कि संसार छूट गया, यह एक प्रकार से सीट का रिजर्वेशन है। मोह की तीव्रतम ग्रंथियां टूटती हैं तभी सम्यक्त्व का उजाला होता है। साध्वी श्री ने आगे कहा कि मात्र आहार देने से ही सम्यक्त्व का उपार्जन नहीं हुआ बल्कि आहार देने के साथ भावों की गहराई भी थी। दिया तो बहुत कम पर भावों के उल्लास के कारण पाया बहुत अधिक। जैन दर्शन के अनुसार भवों की गिनती सम्यक्त्व के उपार्जनके बाद पारंभ होती है। नयसार के जीव ने नयसार से लेकर भगवान महावीर के जन्म तक का जो सफर तय किया उसमें कुछ पड़ाव मूल्यवान न बने जिसमें मरीचि का भव,जहां परमात्मा ऋषभदेव ने उनके भविष्य की घोषणा करते हुए चक्रवर्ती वासुदेव एवं तीर्थकर बनने की बात भरत चक्रवर्ती को कही।
